Thursday, November 21, 2024
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नव दिवसीय संगीतमय श्री Ramkatha रामकथा

परम पूज्य वाणीभूषण त्यागमूर्ति संत श्री शंभु शरण जी लाटा जी व्यास पीठ पर आसीन होकर कल की Ramkatha रामकथा भगवान राम लक्ष्मण जानकी जी

परम पूज्य वाणीभूषण त्यागमूर्ति संत श्री शंभु शरण जी लाटा जी व्यास पीठ पर आसीन होकर कल की Ramkatha रामकथा भगवान राम लक्ष्मण जानकी जी सहित मुनि बाल्मीकि जी के आश्रम से आगे आकर चित्रकूट पर्वत पर कुटिया बनाकर रहने के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि वहां के बनवासी लोग राम प्रेममय होकर पतों के दोनो में कन्द मूल फल लाकर दर्शन कर सहज ही बात करते हैं जिनका मुनि एवं वेद भी पार नहीं पाते हैं उनके वचन ऐसे सुनते हैं जैसे पिता अपने पुत्र की बात प्रेम से सुनते हैं इस संदर्भ में बताया कि प्राणी मात्र को जिस विधि से भगवान में प्रेम बढे उसी विधि को जीवन में अपनाना चाहिए। क्योंकि भगवान को केवल और केवल प्रेम से ही पाया जा सकता है।


चित्रकूट में रामजी माता पिता परिजन तथा विशेषतः भाई भरत के स्नेह शील और सेवा की याद आने के संदर्भ में बताया कि अभिमान इन तीनों के मार्ग में सबसे बङी बाधा है अगर कोई भी व्यक्ति इस अभिमान से मुक्ति पाकर स्नेह शील और सेवा का व्रत जीवन में धारण करें तो भगवान की कृपा प्राप्त हो जाती है।


मंत्री सुमन्त जी के वापस आने तथा राम विरह से व्याकुल महाराज दशरथ के प्राण कंठ तक आने पर अनजाने में हुए श्रवणकुमार वध के पाप की कथा कौशल्या को सुनाने का प्रसंग रामचरित मानस में विस्तार से नहीं है परन्तु वर्तमान में इसके महत्व की आवश्यकता को समझ कर प्रायः हर कथा में पूज्य गुरुवर विस्तार के साथ इसको उसी क्रम में बङे ही मार्मिक ढंग से सुनाते हुए इस Ramkatha रामकथा में भी बताया कि तन का धन का पुत्र का होने का सुख सबको अपने-अपने भाग्य के अनुसार ही मिलेगा।


फिर इसके मर्म को माता-पिता की सेवा के लिए बहुत ही करुण रस से भरे भजनों को गाकर समझाने पर श्रोताओ के नेत्रों में अश्रु बिन्दू छलक आये।


संतश्री ने बताया कि जिनके भी माता पिता जीवित हैं उनकी तन मन धन से सेवा करनी चाहिए और अगर इस कार्य को करने में अगर भगवान की सेवा भी छूटती है तो भी कोई हानि नहीं है।इसी प्रसंग में बताया कि जाने अनजाने में किसी भी प्रकार का पाप होता है तो भी कहा कि कोई कितना भी बलवान,बुद्धिमान, विद्वान अथवा धनवान हो कर्म का फल अवश्य ही भोगना पङता है क्योंकि पाप भगवान राम के बाप को भी नहीं छोड़ता इसलिए यह समझ कर किसी को भी दुखी करने के पाप से बचना चाहिए।


Ramkatha रामकथा आगे के प्रसंग में भरत जी के राम प्रेम एवं भक्ति का वर्णन करते हुए कहा कि भक्ति मार्ग के पथिको को कि जब अपने लोग ही कष्ट देवें तथा विरोध करने लगे तब यह समझ लेना चाहिए भक्ति का मार्ग प्रशस्त हो रहा है । संत श्री ने कहा कि भरत के राम प्रेम और रामकथा के प्रसंगों का कथा की सीमित अवधि में विस्तार नहीं हो सकता है। भरत जी की भक्ति और राम प्रेम के संदर्भ मे कहा कि प्रेम दबाव नहीं डालता इसीलिए भरत जी ने रामजी से कुछ भी नहीं

कहा और कहा कि हे प्रभो
जेहि बिधि प्रभु प्रसन्न मन होई।
करुनासागर कीजिअ सोई।


भगवान राम से चौदह वर्ष की अवधि अवध को संभालने की आज्ञा दी जिसको भरत जी ने स्वीकार करके अवधि को पार पाने के लिए आधार मांगने पर रामजी कृपा करके पादुका देते हैं भरत जी सीता और राम समझ मन में यह सोचकर कि पादुका के पास चरणों को आना ही है इसी आनन्द में भरत जी कहते
जय श्री राम

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