सीएए के विरोध प्रदर्शनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी प्रशासन को तगड़ा झटका दिया है। दरअसल सुप्रीम अदाल ने प्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान के लिए सरकार द्वारा जारी किए गए वसूली नोटिस के माध्यम से की गई सभी वसूली को वापस करने का निर्देश (supreme court orders) दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब नोटिस वापस ले लिए गए हैं तो तय प्रक्रिया का पालन करना होगा. यदि कुर्की कानून के विरुद्ध की गई है और आदेश वापस ले लिया गया है, तो कुर्की को कैसे चलने दिया जा सकता है?
इधर, यूपी राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट से वसूली की वापसी का आदेश (supreme court orders)नहीं देने का आग्रह किया है क्योंकि यह राशि करोड़ों रुपये में चली गई और यह दिखाएगा कि प्रशासन द्वारा की गई पूरी प्रक्रिया अवैध थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद की इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि प्रदर्शनकारियों और राज्य सरकार को रिफंड का निर्देश देने के बजाय क्लेम ट्रिब्युनल में जाने की अनुमति दी जानी चाहिए.
अदालत ने आदेश परवेज आरिफ टीटू द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। जिसमें यूपी में सीएए आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए जिला प्रशासन द्वारा कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिस को रद्द करने की मांग की गई थी.
याचिका में आरोप लगाया गया था कि इस तरह के नोटिस एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ “मनमाने तरीके” से भेजे गए हैं, जिनकी छह साल पहले 94 साल की उम्र में मौत हो गई थी और साथ ही 90 साल से अधिक उम्र के दो लोगों सहित कई अन्य लोगों को भी भेजा गया था.
आपको बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ साल 2019 में प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ यूपी सरकार ने हर्जाना वसूली के लिए नोटिस जारी किया था. यूपी सरकार के रवैये से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों को भेजे गए वसूली नोटिस राज्य शासन वापस ले, वरना हम इसे रद्द कर देंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने आरोपी की संपत्ति को कुर्क करने के लिए कार्रवाई करने में खुद एक “शिकायतकर्ता, निर्णायक और अभियोजक” की तरह काम किया है.